
भारत विभिन्न धर्म, जाति, संप्रदाय के लोगो लोगो का देश है। यहाँ सभी धर्मो के लोग अपनी अपनी धार्मिक मान्यताओ और संस्कृति के अनुसार अपने त्यौहार मनाते है। आज त्योहारों ,संस्कृतिक कार्यक्रमों व् पारिवारिक कार्यक्रमों में नशे ने अपना प्रमुख स्थान बना लिया है।चाहे खुशी हो या फिर गम का अवसर हो तरह तरह के कुतर्को व् धार्मिक मान्यता व् देवी देवताओ का नाम ले लोग नशा
करने लगते है। भारत में शराब,सिगरेट ,तम्बाकू ,चरस, अफीम आदि नशा करते युवाओ से लेकर बच्चो को करते देखा जाता है ।
करने लगते है। भारत में शराब,सिगरेट ,तम्बाकू ,चरस, अफीम आदि नशा करते युवाओ से लेकर बच्चो को करते देखा जाता है ।
शराब अक्सर हमारे समाज में आनन्द के लिए पी जाती है। ज्यादातर शुरूआत दोस्तों के प्रभाव या दबाव के कारण होता है और बाद में भी कई अन्य कारणों से लोग इसका सेवन जारी रखते है। जैसे- बोरियत मिटाने के लिए, खुशी मनाने के लिए, अवसाद में, चिन्ता में, तीव्र क्रोध या आवेग आने पर, आत्माविश्वास लाने के लिए या मूड बनाने के लिए आदि। इसके अतिरिक्त शराब के सेवन को कई समाज में धार्मिक व अन्य सामाजिक अनुष्ठानों से भी जोड़ा जाता है। परन्तु कोई भी समाज या धर्म इसके दुरूपयोग की स्वीकृति नहीं देता है
रम, विस्की, महुआ, ब्रांडी, जीन, बीयर, आदि सभी एक है क्योंकि सबमें अल्कोहल होता है। हाँ, इनमें एलकोहल की मात्रा और नशा लाने कि अपेक्षित क्षमता अलग-अलग जरूर होती है परन्तु सभी को हम 'शराब' ही कहते है। कभी-कभी लोग हड़िया या बीयर को शराब से अलग समझते हैं जो कि बिलकुल गलत है। दोनों में एल्कोहल तो होता ही है।
आजकल सिख धर्म में सिगरेट वर्जित मानी जाति है लेकिन शराब का उपयोग बहुतायत देखा गया है । इसी तरह ईसाईं धर्म में सिगरेट शराब का नशा विबिन्न आयोजनों में देखा गया है। हिन्दू धर्म में भी भगवान शिव ,कालीमाता,भैरव आदि देवी देवताओ को शराब ,भांग,अफीम आदि चढाने के नाम पर नशे का सेवन करते पाया गया है । इस्लाम धर्म के भी कुछ नवयुवक अनुयायी कुतर्क कर नशे की पार्टी करते देखे जा सकते है ।
क्या कहता है धर्म नशे के बारे में :-
भारत के चार अहम धर्म क्या कहते हैं नशे के बारे में और उनके अनुयायियों ने कैसे अपने हिसाब से धर्म को तोड़ मरोड़ लिया है?
हिन्दू धर्म -

हिंदू धर्म धर्म में भैरव जी को शराब भोग में चढ़ाई जाती है और काली माता की पूजा में भी कई अनुष्ठानों में शराब प्रसाद के तौर पर चढ़ती है लेकिन भगवान शिव के भक्त चिलम पीते और भांग-धतूरे से नशा करते हुए दिखाई देते हैं. यह बहाना लेकर कि भगवान शिव भी इसका उपभोग करते हैं. तमाम युवक व् बुजुर्ग कशपे कश लगाये देखे जाते है।लेकिन हिंदू मान्यताओं की बात की जाए तो तम्बाकू और अन्य नशे के पदार्थ तामसिक माना गया हैं।अर्थात हिंदुओं में भीनशा वर्हैजित है।
गीता के अध्याय 18 के श्लोक 39 में लिखा है-
यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मनः।
निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम्॥
यानी जो सुख भोगकाल में तथा परिणाम में भी आत्मा को मोहित करने वाला है, वह निद्रा, आलस्य और प्रमाद (नशा) से उत्पन्न सुख तामस कहा गया है.
इसके अलावा भी गीता में कई जगह नशा न करने की सलाह दी गई है।
हालांकि, आयुर्वेद में शराब, तम्बाकू और गांजे को उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन ये उन्हीं लोगों के लिए है जिन्हें इसकी जरूरत होगी।
इस्लाम धर्म-
इस्लाम की बात करें तो कुरान में नशा हराम माना गया है. तम्बाकू और अन्य तरह के नशे के शरीर पर खराब असर के कारण ही इसे हराम माना गया है. इस्लाम धर्म ये भी कहता है कि शरीर भगवान का तोहफा है और इंसान को अपनी शख्सियत बचा कर रखनी चाहिए और ये भी वजह है कि नशे से दूर रहने को कहा गया है.लेकिन यह भी उतना ही सही है कि बादशाहों की आरामगाह में शराब अनिवार्य होती थी।

कुरान शरीफ की आयत 4:43 में कहा गया है-
नशा करने वालों की दुआ कुबूल नहीं होती है. “ऐ ईमान वालों (मुसलमानों)! अगर तुम नशे की हालत में हो तो नमाज मत पढ़ो ,कुरान शरीफ में नशे को हराम माना गया है।
सिख धर्म-
सिख धर्म में सिगरेट के बारे में नहीं लिखा गया है क्योंकि जब इन धर्मों की स्थापना हुई तब सिगरेट प्रचलन में ही नहीं थीं. हां, इस धर्म में शराब के बारे में साफतौर पर लिखा हुआ है।सिख धर्म में नशा वर्जित है. ड्रग्स और तम्बाकू सिखों के लिए वर्जित है।

श्री गुरूग्रंथ साहिब के पैराग्राफ 554 में लिखा है कि..
'शराब पीने से, इंसान की सोचने की शक्ति पर असर पड़ता है, पागलपन उसपर हावी होता है. वो अपने और पराए में फर्क नहीं कर पाता और अपने गुरू द्वारा नकार दिया जाता है.'
जिस सिख ने पंच 'ककार' यानी कंघी, केश, कटार, कड़ा और कंघा धारण किया है उसके लिए तो ये पाप करने के बराबर है. तो कुल मिलाकर सिख धर्म के लिए सिर्फ सिगरेट नहीं बल्कि शराब भी वर्जित है, लेकिन ये कहना सही होगा कि इसे अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ लिया गया है।
ईसाई धर्म-
ईसाई धर्म धर्म में वाइन को ईसा मसीह के खून से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि मसीह पानी को छूकर वाइन बना देते थे।
ईसाई धर्म में शराब को रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा माना जाता था और यहां तक कि चर्च में प्राथर्ना सभा के दौरान भी ब्रेड और वाइन प्रसाद के रूप में दिया जाता है. ईसा मसीह के आखिरी भोजन 'The last supper' में भी वाइन के ग्लास की अहम भूमिका है और इसे शैलिस (chalice: एक बड़ा कटोरा या कप.) कहा जाता है. हालांकि, इसका ज्यादा सेवन एक सिन यानी पाप बताया गया है।

बाइबल में वाइन के बारे में लिखा है-
Stop drinking only water, and use a little wine because of your stomach and your frequent illnesses.
(सिर्फ पानी पीना बंद करो, थोड़ी सी वाइन भी लो क्योंकि ये तुम्हारी पेट की समस्या का हल करेगी.)
बाइबल वर्स Ecclesiastes 9:7 में लिखा है कि-
Go, eat your food with gladness, and drink your wine with a joyful heart, for God has already approved what you do.
(जाओ अपना खाना खुशी से खाओ, अपनी वाइन खुशदिली से पियो क्योंकि भगवान ने इसे पहले ही मंजूर किया है)
हालांकि, ईसाई धर्म में इसके ज्यादा पीने से मनाही है और एक तय मात्रा में ही इसे पीने को कहा गया है. जहां तक तम्बाकू का सवाल है तो इसे ईसाई धर्म में भी बैन किया गया है. अगर रोमन कैथोलिक चर्च की बात करें तो कुछ समय पहले पोप जॉन पॉल II की तरफ से आधिकारिक तौर पर तम्बाकू और इसकी बुराइयों के बारे में बताया।
सभी धर्मो के धार्मिक ग्रंथो में नशा शराब आदि वर्जित कहा गया है ईसाई धर्म में यदि कहा भी गया है तो सीमित मात्रा में दवा के रूप में सेवन करने को कहा गया है
तर्क कुतर्क कर अपने नशे की आदत को कुछ लोग धर्म व् देवी देवताओ से जोडकर ना सिर्फ बढावा देते है बल्कि भारत के युवाओ को लती बना अपंग बना रहे है।